· संघ को देश भर में स्थापित करने के लिए गुरूजी का सम्पूर्ण देश में प्रवास होता था. वे साल 1943 में - अप्रैल में अहमदाबाद, मई में अमरावती एवं पुणे, जून में नासिक एवं बनारस, अगस्त में चंद्रपुर, सितम्बर में फिर से पुणे, अक्तूबर में मद्रास एवं मध्य प्रान्त और नवम्बर में लाहौर एवं रावलपिंडी के प्रवास पर थे.
· अप्रैल 1943 में पुणे में 2,000 स्वयंसेवकों ने संघ शिक्षा वर्ग के माध्यम से प्रशिक्षण लिया था. इस वर्ग के अन्तिम सत्र में वीर सावरकार को आमंत्रित किया गया था, इस दिन लगभग 6,000 लोगों की संख्या मौजूद थी.
· नासिक, नागपुर, जबलपुर और अमरावती में प्रशिक्षण लेने वाले स्वयंसेवकों की कुल संख्या 1,900 थी.
· मेरठ में दिल्ली, पंजाब, अजमेर, जयपुर और जोधपुर से आए स्वयंसेवकों की कुल संख्या 800 थी.
· बनारस में बंगाल, बिहार, ग्वालियर और बॉम्बे से आने वाले स्वयंसेवकों की कुल संख्या 800 थी.
· लाहौर में स्वयंसेवकों की संख्या 1,500 थी.
· जून 1943 में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के एक कार्यक्रम में स्वयंसेवकों की संख्या 100 के आसपास थी.
· नागपुर में 7 अक्तूबर, 1943 को एक कार्यक्रम के दौरान लगभग 4,000 स्वयंसेवक एकत्रित हुए.
· लखनऊ, इंदौर, बड़ौदा, तिरुचिरापल्ली, बेलगाँव, वारंगल, मछलीपट्टनम और राजमुंद्री में प्रशिक्षण शिविर आयोजित किए गए थे. साल 1943 तक मध्य प्रांत में स्वयंसेवकों की संख्या 33,344 हो चुकी थी.
· बॉम्बे में 20,476 और पंजाब में 14,000 हो गई थी.
· बिहार के भागलपुर में स्वयंसेवकों की संख्या 20 से 300 हो चुकी थी. राज्य के उत्तरी भाग के ग्यारह जिलों में संघ का कार्य शुरू हो चुका था.
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