Two
day Kendriya Margadarshak Mandal of VHP concluded at Kachi Ashram, Haridwar on
12th June, 2013. Pujyasri
Satyamitrananda Ji inaugurated the session.
Dr. Pravin Togadia, Ashok Chowgule, Jyothishapeetatheeswar,
Shankaracharya Vasudevananda Saraswathi Ji Maharaj, Ramanandacharya
Ramabadracharya Ji, Baba Ramdev and other saints participated in the conclave. A
firm resolution to build a Ram Mandir at Ayodhya was passed in the conclave of
sadhus and saints at Haridwar.
विश्व हिन्दू परिषद के
केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल की
दो दिवसीय बैठक
आज प्रात: कच्छी
आश्रम, सप्त सरोवर
में आरंभ हुई।
बैठक का उदघाटन
निवर्तमान शंकराचार्य पूज्य म0म0 सत्यमित्रानंद जी
महाराज एवं विहिप
के कार्याध्यक्ष डॉ0 प्रवीणभाई तोगड़िया, अशोकराव
चौगुले के द्वारा
हुआ। सत्र की
अध्यक्षता ज्योतिष्पीठाधीश्वर ज0गु0 शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती
जी महाराज ने
की।
द्वितीय सत्र दोपहर 3 बजे से प्रारंभ हुआ, जिसकी अध्यक्षता जगद्गुरू रामानंदाचार्य रामभद्राचार्य जी ने की। बैठक की प्रस्तावना प्रस्तुत करते हुए विहिप के संरक्षक श्री अशोक जी सिंहल ने विस्तार से श्रीराम जन्मभूमि मंदिर निर्माण के इतिहास एवं वर्तमान परिस्थिति का वर्णन करते हुए पू0 संतों से अनुरोध किया कि अब समय आ गया है जब हमें निर्णायक संघर्ष करते हुए श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का संकल्प पूर्ण करना होगा। यदि आवश्यकता पडी तो इसके लिए ऐसी संसद का ही निर्माण क्यों न करना पडे जो राम मंदिर के लिए कानून पारित करने में जरा भी संकोच न करे। श्रीराम जन्मभूमि पर मंदिर निर्माण हेतु प्रस्ताव प्रस्तुत करते हुए परमार्थ आश्रम के परामाध्यक्ष भूतपूर्व गृह राज्यमंत्री स्वामी चिन्मयानंद जी महाराज ने कहा कि जब न्यायालय से यह सिध्द हो चुका है कि विवादित स्थल ही भगवान श्रीराम का जन्मभूमि है, जन्मभूमि स्वयं में देवता है, विवादित ढांचा हिन्दू धार्मिक स्थल पर इस्लाम के नियमों के विरूध्द बनाया गया था, मुस्लिम समाज की याचिका को खारिज कर दिया गया और यह सिध्द पाया गया कि एकमात्र रामलला ही संपूर्ण 70 एकड भूमि के मालिक हैं।
सरकार भी उच्चतम न्यायालय को दिए गए शपथ पत्र से प्रतिपध्द है कि यदि यह सिध्द हो जाता है कि विवादित स्थल पर कभी कोई मंदिर/हिन्दू उपासना स्थल था तो सरकार की कार्रवाई हिन्दू भावनाओं के अनुरूप होगी। अत: कोई कारण नहीं है कि मंदिर निर्माण में कोई विलम्ब हो। इस हेतु पूरी 70 एकड़ भूमि कानून बनाकर हिन्दू समाज को सौंपी जाए। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि मार्गदर्शक मण्डल की यह घोषणा है कि 84 कोस परिक्रमा की भूमि हिन्दू समाज के लिए पुण्य क्षेत्र है, हिन्दू समाज उसकी परिक्रमा करता है। संपूर्ण 84 कोस परिक्रमा के अंदर कोई भी इस्लामिक प्रतीक स्वीकार नहीं होगा। प्रस्ताव में यह भी कहा गया कि न्यायालय की लंबी प्रक्रिया के कारण शीघ्र निर्णय नहीं आ सकेगा, हिन्दू समाज शीघ्रातिशीघ्र मंदिर निर्माण चाहता है अत: सरकर से आग्रह है कि संसद के मानसून सत्र में ही कानून बनाकर अयोध्या में श्रीराम के भव्य मंदिर निर्माण की सभी बाधाएं दूर की जाएं। यदि यह मांग नहीं मानी गई तो हिन्दू समाज उग्र आन्दोलन करने को बाध्य होगा।
प्रस्ताव
के प्रस्तुत
होने के
पश्चात देश
के कोने-कोने
से आए
संत महानुभावों
ने इस
पर अपने
विचार प्रस्तुत
करते हुए
अपना यह
स्पष्ट मत
व्यक्त किया
कि यदि
सरकार मार्गदर्शक
मण्डल द्वारा
किए गए
आग्रह को
स्वीकार करके
ठोस कदम
नहीं उठाती
है और
मानसून सत्र
तक कोई
परिणाम सामने
नहीं दिखाई
देता तो
हम सभी
संतजन श्रीराम
जन्मभूमि
पर भव्य
मंदिर निर्माण
के लिए
सब प्रकार
का बलिदान
देने के
लिए तैयार
हैं। इस
हेतु पूरे
देश में
व्यापक जन
जागरण अभियान
चलाया जाए।
अयोध्या के
चारों ओर 84 कोस
परिक्रमा
क्षेत्र में
और साथ
ही साथ
देश के
गांव गांव
तक व्यापक
जन जागरण
का अभियान
चलाकर सरकार
को बाध्य
करनेवाला
कदम उठाया
जाए।
द्वितीय सत्र में विशेष रूप से उपस्थित हुए योगऋषि बाबा रामदेव जी ने अपने संबोधन में कहा कि ये सत्ताएं बडी धोखेबाज और क्रूर होती हैं। हमें इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि सत्ता अनुकूल हो जायेगी तो राम मंदिर का निर्माण हो जायेगा। सत्ता अनुकूल हो या प्रतिकूल हमें राम मंदिर बनाने का संकल्प लेकर आगे बढ़ना चाहिए। आंदोलन में सब प्रकार की हानियां होती ही हैं उनकी परवाह किए बगैर आगे बढना चाहिए और आंदोलन तब तक नहीं रूकना चाहिए जब तक कि राम मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता। एकमत से सभी पूज्य संतों ने यह कहा कि राम मंदिर निर्माण के लिए जो भी कार्यक्रम और निर्णायक आंदोलन निश्चित किया जायेगा चाहे वह यात्रा के रूप में हो चाहे कूच के रूप में हो हर कीमत पर संत अपनी सभी प्राथमिकताएं छोडकर इस अभियान को सफल करेंगे।
प्रथम सत्र के अध्यक्ष ज0गु0 शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज तथा द्वितीय सत्र के अध्यक्ष पूज्य रामभद्राचार्य जी महाराज ने सभी संतों से आग्रह किया कि वह इस अभियान के साथ पूरी तरह से जुटकर आवश्यकता पडती है तो देश के कोने-कोने में जाकर जन जागरण और जरूरत पडने पर सत्ता से टकराने के लिए भी तैयार रहें। बैठक में पू0राघवाचार्य जी महाराज, श्री रामविलासदास जी वेदान्ती, म0म0 विशोकानंद जी, म0म0 सुरेशदास जी,भूमापीठाधीश्वर अच्युतानंद जी महाराज, म0म0 अखिलेश्वरानंद जी, म0म0 उमाकांतानाथ जी, डॉ0 रामेश्वरदास श्रीवैष्णव, पू0 गोविन्द देव जी महाराज, महतं रमेशदास जी महाराज, बिहारीदास जी महाराज वृन्दावन, राम जन्मभूमि न्यास के कार्याध्यक्ष मणिराम दास छावनी के श्री कमलनयन दास जी महाराज, म0म0 हरिचेतनानंद जी महाराज, जोधपुर से अमृतराम जी महाराज, आन्ध्रप्रदेश से संघराम जी महाराज, सच्चा आश्रम के पूज्य गोपाल बाबा जी महाराज, जूना अखाडा के स्वामी परशुराम जी महाराज, म0म0 विद्यानंद जी, असम के पूज्य जनानंद जी महाराज, छत्तीसगढ से साध्वी छत्रकला, आन्ध्रप्रदेश से शिवस्वामी महाराज, जम्मू से पधारे दिव्यानंद जी महाराज, म0म0 साध्वी वैदेही जी एवं गीतामनीषी म0म0 ज्ञानानंद जी महराज ने अपने विचार आज की बैठक में प्रस्तुत किए। बैठक का संचालन केन्द्रीय मार्गदर्शक मण्डल के संयोजक एवं विहिप केन्द्रीय मंत्री श्री जीवेश्वर मिश्र ने किया।
बैठक में देश के कोने-कोने से आए हुए प्रमुख संतों के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय महामंत्री श्री चम्पतराय, संगठन महामंत्री श्री दिनेशचन्द्र, संयुक्त महामंत्री विनायकराव देशपाण्डे, वाई0 राघवुलू, केन्द्रीय उपाध्यक्ष बालकृष्ण्ा नाईक, ओमप्रकाश सिंहल, केन्द्रीय मंत्री सर्वश्री जीवेश्वर मिश्र, धर्मनारायण शर्मा, कोटेश्वर शर्मा,जुगलकिशोर, ओमप्रकाश गर्ग, उमाशंकर शर्मा, राजेन्द्र सिंह पंकज, रविदेव आनंद, केन्द्रीय सहमंत्री सर्वश्री अशोक तिवारी, आनंद हरबोला, सपन मुखर्जी, राधाकृष्ण मनोडी, साध्वी कमलेश भारती सहित देशभर से आए धर्माचार्य सम्पर्क प्रमुख भी उपस्थित रहे।
Resolution-1
प्रस्ताव क्र. - 1
विषय – अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण
प्रयाग महाकुंभ 2013 के शुभ अवसर पर आयोजित विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक मण्डल के पूजनीय संत-महात्माओं की बैठक में सर्वसम्मति से तय किया गया था कि पुण्य नगरी अयोध्या में विराजित भगवान श्रीरामलला का कपडों द्वारा निर्मित मंदिर संतों के साथ-साथ संपूर्ण हिन्दू समाज को शर्मसार कर रहा है। जनसमाज यथाशीघ्र भगवान के दर्शन भव्य मंदिर में करना चाहता है। प्रयाग महाकुंभ में संतों के विशाल सम्मेलन के अवसर पर जनसमाज के सामने मार्गदर्शक मण्डल के संतों ने विचार व्यक्त करते हुए कहा था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के तीनों न्यायाधीशों ने एकमत से निर्णय दिया है कि–
1. विवादित स्थल ही भगवान श्रीराम का जन्मस्थान है। जन्मभूमि स्वयं में देवता है और विधिक प्राणी है।
2. विवादित ढांचा किसी हिन्दू धार्मिक स्थल पर बनाया गया था।
3. विवादित ढांचा इस्लाम के नियमों के विरूध्द बना था, इसलिए वह मस्जिद का रूप नहीं ले सकता।
- विद्वान न्यायाधीशों ने मुस्लिमों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया था। इस प्रकार यह सिध्द कर दिया था कि एकमात्र रामलला ही 70 एकड़ भूमिखण्ड के मालिक हैं।
- मार्गदर्शक मण्डल के निर्णय के अनुसार संत-महात्माओं का एक शिष्ट मण्डल महामहिम राष्ट्रपति से भेंट करने गया था। संतों ने राष्ट्रपति जी को एक ज्ञापन देते हुए कहा था कि भारत सरकार के अटार्नी जनरल ने 14 सितम्बर, 1994 को सर्वोच्च न्यायालय में एक शपथ पत्र देकर कहा था कि–’यदि यह सिध्द होता है कि विवादित स्थल पर पहले कभी कोई मन्दिर/हिन्दू उपासना स्थल था तो सरकार की कार्रवाई हिन्दू भावना के अनुसार होगी।’ अत: उच्च न्यायालय का निर्णय आने के बाद भारत सरकार की यह बाध्यता है कि वह अपने वचन का पालन करे और भारत सरकार 70 एकड़ भूमि मंदिर निर्माण हेतु हिन्दू समाज को शीघ्र कानून बनाकर सौंप दे।
- मार्गदर्शक मण्डल स्पष्ट रूप से घोषित करता है कि अयोध्या की 84 कोस परिक्रमा की भूमि हिन्दू समाज के लिए पुण्य क्षेत्र है। हिन्दू समाज पुण्य क्षेत्र की ही परिक्रमा करता है, इसलिए इस पुण्य क्षेत्र में हिन्दू समाज किसी भी प्रक ार के इस्लामिक प्रतीक को स्वीकार नहीं करेगा। यदि वहां कोई इस्लामिक प्रतीक बनाया गया तो वह बाबर के रूप में जाना जायेगा जिसके कारण हिन्दू-मुस्लिम विवाद हमेशा के लिए बना रहेगा।
- मार्गदर्शक मण्डल का यह सुविचारित मत है कि न्यायालयों की लम्बी प्रक्रिया से शीघ्र निर्णय नहीं आ सकेगा। इधर हिन्दू समाज रामलला को शीघ्रातिशीघ्र भव्य मंदिर में विराजित देखना चाहता है, इसलिए भारत सरकार से मार्गदर्शक मण्डल का आग्रह है कि संसद के मानसून सत्र में ही कानून बनाकर अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि के भव्य मंदिर निर्माण की सभी कानूनी बाधाएं दूर करें। यदि मार्गदर्शक मण्डल की यह मांग नहीं मानी गई तो हिन्दू समाज उग्र आन्दोलन करने को बाध्य होगा।
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