प्रयागराज. विभिन्न मत, पंथ, सम्प्रदाय के विभिन्न प्रान्तों से पधारे भारत के हजारों पूज्य संत गंगा पण्डाल में एकत्रित हुए. जहाँ ‘एक सद्रविप्रा बहुधा वदन्ति’ ध्येय वाक्य पर पूज्य सन्तों ने अपने विचार रखे. कार्यक्रम का शुभारम्भ दीप प्रज्ज्वलन, गणेश वन्दना, हरिभजन से हुआ. सभी मत, पंथ, सम्प्रदाय के पूज्य सन्तों के वचनों की एक सुन्दर प्रदर्शनी लगाई गई थी, जिसका उद्घाटन सुबह 10 बजे हुआ. राजर्षि टण्डन मुक्त विवि के कुलपति डॉ. केएन सिंह ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि भारत में हिमालय से हिन्द महासागर तक विभिन्न भौगोलिक स्थितियां एवं मत पंथ सम्प्रदाय हैं. लेकिन भारत एक है. भौगोलिक दृष्टि से भी एक है, विभिन्नता में एकता है, सभी सन्त विद्वतजन एकता के संदेश को लेकर भारत के वैभव के प्रति पूर्ण संकल्पित होकर कार्य करते हैं.
कार्यक्रम के अध्यक्ष जगतगुरु रामानुजाचार्य हंसदेवाचार्य ने विश्वविद्यालय परिवार को इस प्रयास के लिए धन्यवाद दिया, साथ ही कहा कि ऐसे कार्यक्रम के आयोजन से भारतीय संस्कृति की जड़ें मजबूत होंगी. हिन्दू समाज एवं हिन्दू संस्कृति का संवर्द्धन एवं संरक्षण होगा. योगगुरु राम देव जी ने कहा कि हिन्दू समाज पर जाति व्यवस्था का आरोप उचित नहीं, भारत की संस्कृति भेद की नहीं, एकता की संस्कृति है, स्त्री-पुरुष में भेद नहीं है. नारी सशक्तिकरण का संदेश आदि काल से पूज्य संतों के द्वारा समय-समय पर समाज मिलता रहा है. पूज्य संतों को आगे आकर नशा मुक्त समाज की स्थापना करना चाहिए. गोविन्द गिरी जी ने कहा कि भारत की आत्मा वेदों में बसी है, नदियां, संस्कृति पूरी दुनिया को आकर्षित करती है, कोई मत पंथ सम्प्रदाय आक्रमण की बात नहीं करता है. भारतीय संस्कृति सफल एवं स्वच्छ है जो दुनिया को शांति का मार्ग एवं दुनिया के सुख की कामना करती है. अवधेशानन्द जी ने कहा कि सत्य पर सबसे अधिक विचार भारत में हुआ है, पूरी दुनिया विश्व को बाजार मानती है. भारत दुनिया को परिवार मानता है. स्वामी चिदानंद जी ने कहा कि कुम्भ से दिशा मिलती है, लेकिन सर्वसमावेशी सांस्कृतिक कुम्भ की सोच ने कुम्भ को नई दिशा दी है, लोग कहते हैं कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ देश तोड़ने की बात करता है. लेकिन भारतीय संस्कृति एवं भारत को जोड़ने का कार्य केवल संघ करता है. सभ्यता और प्रकृति को सुरक्षित रखना, पानी को संचयित करना ही भविष्य है. तभी संगम कुम्भ एवं पहचान रहेगी. केन्द्रीय तिब्बत विवि. के कुलपति रिम्पोचे ने भारतीय संस्कृति को अंहिसा और संतोष का आधार बताया, इसी देश ने सभी धर्मों, सम्प्रदायों को जन्म दिया. विश्व की सभी चुनौतियों का मुकाबला, मानसिक प्रदूषण को समाप्त करने का सूत्र भारतीय संस्कृति में है.
कमल मुनि जैन, जितेन्द्र जी महराज, साध्वी प्राची, प्रीति (प्रियवंदा) सतपाल जी महराज, उमेश नाथ बाल्मीकि, डॉ. विजय राम (पुरी) वाल्मीकि सहित कई आचार्यों ने विचार रखे. सभी ने विविधाताओं में एकता की बात कही. धन्यवाद ज्ञापित करते हुए सर्वसमावेशी सांस्कृतिक कुम्भ के संयोजक डॉ. सुरेन्द्र जैन ने कहा कि भारत माता भूगोल नहीं संस्कृति है, कश्मीर से कन्याकुमारी तक भारत एक है, मानव जीवन की समस्त समस्याओं का हल इसी संस्कृति में है. पूज्य संत इस राष्ट्र के प्राण हैं जो मानव को समय-समय पर मार्गदर्शन करते हैं.
कार्यक्रम में प्रमुख रूप से विहिप केन्द्रीय अध्यक्ष वी. एस. कोकजे, कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार, सह सरकार्यवाह, दत्तात्रेय होसबले, सह सरकार्यवाह डॉ. कृष्ण गोपाल, दिनेश जी, केन्द्रीय सन्त सम्पर्क प्रमुख अशोक तिवारी जी, सहित अन्य गणमान्यजन उपस्थित रहे. मंच संचालन विहिप केंद्रीय उपाध्यक्ष जीवेश्वर मिश्र जी ने किया.
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