न्याय में देरी अन्याय है’, इस वाक्य को पाठ्यक्रम से हटा दे- सरसंघचालक
नागपुर, 25 नवम्बर पाठशालाओ में “justice delayed is justice denied” ऐसा वाक्य पढाया जाता है। जिसका अर्थ होता है कि, “न्याय में विलंब अन्याय है” लेकिन राम मंदिर के बारे में सर्वोच्च न्यायालय कि भूमिका को देखते हुए ऐसा लगता है कि, इस वाक्य को पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए ऐसा प्रतिपादन सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित हुंकार रैली को संबोधित करे हुए किया। साथ ही अध्यादेश द्वारा राम मंदिर के निर्माण कि बात उन्होने दोहराई।
इस अवसर पर ज्योतिषपीठाधिश्वर शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती ने कहा कि, अयोध्या में मंदिर के प्रमाण मिलने के बाद भी सर्वोच्च न्यायालय ने टायटल सूट को पार्टीशन सूट मे तब्दिल कर दिया है। यह देश के हिंदुओ कि जनभावना का अनादर है। इस मामले में जल्द फैसला होना चाहिए। यदी ऐसा नही होता तो सरकार का यह कर्तव्य है वह संसद में कानुन बनाए इसी में सरकार का हित होगा। राज्य सभा में बहुमत कि मुश्किल पेश आ रही हो तो प्रधानमंत्री संसद का संयुक्त अधिवेशन बुला कर कानुन पारित करे। यदी उसके बाद भी कोई रोडा अटकाता है तो वह बेनकाब हो जाएगा। यदी ऐसा हुवा तो उसका फायदा भी सरकार को मिलेगा और सरकार फिर से सत्ता में आएगी। इस अवसर पर शंकराचार्य नें अलाहबाद और फैजाबाद के नामांतरण कि प्रशंसा करते हुए दिल्ली का नाम बदल कर इंद्रप्रस्थ रखने कि मांग कि।
नागपुर, 25 नवम्बर पाठशालाओ में “justice delayed is justice denied” ऐसा वाक्य पढाया जाता है। जिसका अर्थ होता है कि, “न्याय में विलंब अन्याय है” लेकिन राम मंदिर के बारे में सर्वोच्च न्यायालय कि भूमिका को देखते हुए ऐसा लगता है कि, इस वाक्य को पाठ्यक्रम से हटा देना चाहिए ऐसा प्रतिपादन सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नागपुर में आयोजित हुंकार रैली को संबोधित करे हुए किया। साथ ही अध्यादेश द्वारा राम मंदिर के निर्माण कि बात उन्होने दोहराई।
राम मंदिर निर्माण के लिए सदन में कानुन परित करवाने हेतू सरकार पर दबाब बनाने के लिए स्थानिय ईश्वरराव देशमुख महाविद्यालय में आयोजित हुंकार रैली का आयोजन किया गया था। जिसमे ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती, साध्वी ऋ तंभरा, देवनाथ पीठाधिश्वर जितेंद्रनाथ महाराज और विश्व हिंदु परिषद के कार्याध्यक्ष अलोककुमार प्रमुखता से उपस्थित थे।
इस सभा को संबोधित करते हुए भागवत ने कहा कि, राम मंदिर से जुडे पहले आंदोलन में उन्होने 1987 में हिस्सा लिया था। इस घटना को पुरे 30 वर्ष बीत चुके है। इसके बाद भी मंदिर नही बना और इस प्रकार से हुंकार रैली आयोजित करनी पड रही है। यह देश और समाज के सामने सबसे बडी विडंबना है। देश जब गुलाम था तो भारतीय लोक अपने मन से कोई फैसला नही कर पाते थे। लेकिन आझादी के बाद सरदार वल्लभबाई पटेल कि अगुवाई में सोमनाथ मंदिर का निर्माण हुवा। राम मंदिर का मसला भी ठीक उसी तरह का है। बाबर एक परकिया आक्रांता था। उसका देश के मुस्लीम समुदाय से कोई संबंध नही था। इस बाबर के सेनापती ने तलवार के दम पर राम मंदिर को ध्वस्त कर वहा ढाचा खडा करने का प्रयास किया था। इसलिए बाबर और बाबरी का देश के मुसलमानो से संबंध जोडना अनुचित है।
राम जन्मभूमी कि जगह पर पुरातत्त्व विभागद्वारा हुई खुदाई में मंदिर के अवशेष प्राप्त हुए है। जिसे कानुनी तौर पर पुख्ता सबुत माना जाता है। समाज केवल कानुन के अक्षरो से नही चलता जनता और न्याय व्यवस्था ने एकदुसरे को समझने कि आवश्यकता है। देश के सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया है कि, यह मामला उनकी वरियता का नही है। इस निर्णय को बार-बार टाला जा रहा है। इस मामले में रोडा अटकाने वालो के पास कोई तथ्य नही है। इसलिए वह इसे लंबा खिचना चाहते है। लेकिन अब देश के हिंदुओ को राम मंदिर के लिए लडना नही अडना है। अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए 1980 से जो प्रयासरत है उन्ही के हाथो मंदिर खडा करवाना है।
अयोध्या में मंदिर निर्माण हेतु सरसंघचालक ने धैर्य, दृष्टी, दक्षता और मती के आचरणी की, चतुःसुत्री बताई। जिस प्रकार हनुमान नें धर्या, दृष्टी, दक्षता और बुद्धीयुक्त व्यवहार से समुद्र पर राज करने वाली सिंहीका राक्षसी को समाप्त किया था। हनुमान के उन्ही गुणो को आचरण में उतारते हुए हमे पुरे देश में जनजागरण करना होगा जिससे जनता जागृत हो और सरकार पर दबाव बनाए कि, वह जल्द से जल्द अध्यादेश ले आए ऐसा आवाहन सरसंघचालक डॉ. भागवत ने किया।
मोदीजी, भागवतजी कि इच्छा को आज्ञा माने- ऋतंभरा
अयोध्या में राम मंदिर बने यह पुरे देश कि इच्छा है। यदी न्यायालय द्वारा इसमे विलंब हो रहा है तो संसद में कानुन बनाना चाहिए। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने यही इच्छा जाहीर कि है। भारतीय सभ्यता में बडो कि इच्छा को आज्ञा माना जाता है। इसलिए मोदीजी सरसंघचालक कि इच्छा को आज्ञा समझ के संसद मे राम मंदिर के लिए कानुन बनाए ऐसी मांग साध्वी ऋ तंभरा ने कि। इस रैली में मौजुद 60 हजार रामभक्तो को संबोधित करते हुए ऋतंभरा ने कहा कि, देश अब करोडो हिंदुओ कि आस्था से अधिक समलिंगी लोगो के मुद्दे अधिक प्रभावशाली हो गए है। इसलिए समलिंगीयो के मामले में फैसला आ जाता है लेकिन राम मंदिर का मामला वही उलझा रहता है। देश में कुछ लोगो को लगता है कि वह नित नए हथकंडो से राम जन्मभूमी के मामले को उलझा देंगे। लेकिन वह ध्यान रखे कि यदी उनके पास हथकंडे है तो संतो के पास आस्था, त्याग और बलिदानो के दंडे है। हमारी सभ्यता प्राचिन काल से शक, हुण, मुगल सभी को स्वीकारते आई है। इतना ही नही हमने धर्म के आधार पर हुए देश के दुर्भाग्यपूर्ण विभाजन को भी स्वीकार किया है। अब बडा दिल करने कि बारी दुसरे पक्ष कि है। यदी प्रधानमंत्री इस मामले में संसद में कानुन बनाते है तो वह कालजयी हो जाएंगे। कई बार ऐसा होता है कि, बच्चा जब तक रोता नही मां उसे दूध नही पिलाती। शायद सरकार भी इसी इंतजार में बैठी हो। इसलिए देश के सभी हिंदुओ ने आपसी भेदभाव को भुला कर सरकार पर दबाव बनाना चाहिए। राम मंदिर को मुस्लीमो से ज्यादा हिंदू विरोध करते है। अब समय आ गया है कि हम संयुक्त रूप से अपनी मांग सरकार के सामने रखे। न्यायालय ने तो भूमिका साफ कर दी है। इसलिए संसद में कानुन बनाने के लिए हमे सरकार पर दबाव बनाना होगा।
इस अवसर पर प्रधानमंत्री तथा साध्वीयो कि जाती पर प्रश्न खडा करने वाले काँग्रेस नेता सी.पी. जोशी कि ऋतंभरा ने कडे शब्दो में आलोचना की। उन्होने कहा कि, अपने बयान से हिंदुओ को जाती,पंथ, संप्रदायो में विभाजीत करने वाले सी.पी. जोशी कैची कि तरह है। जो केवल काटना जानती है। वही संत समाज सुई-धागा है जो सिलाई से पुरे हिंदु समाज को जोडे रखता है।
सरकार फायदे में रहेगी- शंकराचार्य
संसद में अध्यादेश लाना संभव- अलोककुमार
विहिंप के कार्याध्यक्ष अलोककुमार ने कहा कि, अयोध्या मामले में किसी भी प्रकार कि कोई कानुनी जटिलता नही है। इस मामले में सुन्नी वक्फबोर्ड कि याचिका खारिज हो चुकी है। लेकिन राम जन्मभूमी का तीन हिस्सो में विभाजन किया गया है। जमीन के विभाजन के यह मसला सर्वोच्च न्यायालय के समाने विचाराधीन है। लेकिन सर्वोच्च न्यायालय इस मामले में जल्दी फैसलना नही करना चाहता। इसलिए सरकार कानुन से इस मामले का निपटारा कर सकती है। इससे पहले भी, एस.सी.-एसटी एक्ट, शहाबानो ऐसे कई मामले सरकार ने कानुन से निपटाए है। इसलिए राम जन्मभूमी मामले में भी सरकार अध्यादेश पारित कर जनभावना का आदर करे ऐसी मांग आलोककुमार ने कि।
कडा संघर्ष होगा- जितेंद्रनाथ महाराज
देवनाथपीठाधीश्वर जितेंद्रनाथ महाराज नें बताया कि, एक ओर सर्वोच्च न्यायालय समलिंगता, महिलाओ के विवाहबाह्य संबंध, पटाखे और शबरी मला जैसे कई गैर जरूरी मामलो का निपटारा करते आया है। वही करोडो हिंदुओ कि आस्था से जुडे राम मंदिर के विषय को बार बार टाला जा रहा है। इसलिए अब याचना नही रण होगा संघर्ष बडा कडा होगा ऐसा नारा देते हुए उन्होने हिंदु समाज को सरकार पर कानुन बनाने के लिए दबाव दालने का आवाहन किया।
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