श्रीगुरुजी के निर्देशन में स्वतंत्रता संग्राम

ब्रिटिश इंटेलिजेंस दस्तावेजों के अनुसार मई 1943 में वर्धा की सभा में संघ के एक प्रचारक ने भारत की स्वतंत्रता की बात कही थी. 

· 25 अगस्त, 1943 को अध्यापक एवं स्वयंसेवक, नरसिंह यशवंत तेलांग ने अकोला में 250 विद्यार्थियों के समक्ष कहा कि देश को स्वतंत्रता जल्दी मिल सकती है, लेकिन हिन्दुओं को इसके लिए एकजुट होना होगा. 

· 12 सितम्बर, 1943 को जबलपुर के गुरुदक्षिणा कार्यक्रम में बाबासाहेब आप्टे ने कहा कि भारत में ब्रिटिश बर्ताव असहनीय होता जा रहा है और उन्होंने अपने श्रोताओं को सलाह दी कि देश की स्वतंत्रता के लिए वे तैयार रहे. 

· 8 अगस्त, 1942 को मुंबई के गोवलिया टैंक मैदान पर कांग्रेस अधिवेशन में महात्मा गांधीजी ने 'अंग्रेज! भारत छोड़ो' यह ऐतिहासिक घोषणा की. दूसरे दिन से ही देश में आन्दोलन ने गति पकड़ी और जगह जगह आन्दोलन के नेताओं की गिरफ्तारी शुरू हुई. 

· विदर्भ में बावली (अमरावती), आष्टी (वर्धा) और चिमूर (चंद्रपुर) में विशेष आन्दोलन हुए. चिमूर के समाचार बर्लिन रेडियो पर भी प्रसारित हुए. यहां के आन्दोलन का नेतृत्व कांग्रेस के उद्धवराव कोरेकर और संघ के अधिकारी दादा नाईक, बाबूराव बेगडे, अण्णाजी सिरास ने किया. 

· इस आन्दोलन में अंग्रेज की गोली से एकमात्र मृत्यु बालाजी रायपुरकर इस संघ स्वयंसेवक की हुई. कांग्रेस, श्री तुकडो महाराज द्वारा स्थापित श्री गुरुदेव सेवा मंडल एवं संघ स्वयंसेवकों ने मिलकर 1943 का चिमूर का आन्दोलन और सत्याग्रह किया. इस संघर्ष में 125 सत्याग्रहियों पर मुकदमा चला और असंख्य स्वयंसेवकों को कारावास में रखा गया. 

· भारतभर में चले इस आन्दोलन में स्थान-स्थान पर संघ के वरिष्ठ कार्यकर्ता, प्रचारक स्वयंप्रेरणा से कूद पड़े. 

· स्वतंत्रता संग्राम में संघ के स्वयंसेवकों को कांग्रेस के आंदोलनों में भाग लेने के लिए कभी भी नही रोका गया. अलबता भारी संख्या में स्वयंसेवक गांधीजी के द्वारा संचालित सत्याग्रह में जाया करते थे. इतना ही नही हजारों स्वयंसेवक कांग्रेस की सभी प्रकार की गतिविधियों में सक्रियता से भागीदारी करते थे. 

· कार्यकर्ताओं ने स्थान-स्थान पर अन्य स्वयंसेवकों को साथ लेकर इस आन्दोलन में भाग लिया उनके कुछ नाम इस प्रकार हैं : राजस्थान में प्रचारक जयदेवजी पाठक, जो बाद में विद्या भारती में सक्रिय रहे। आर्वी (विदर्भ) में डॉ. अण्णासाहब देशपांडे। जशपुर (छत्तीसगढ़) में रमाकांत केशव (बालासाहब) देशपांडे, जिन्होंने बाद में वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की। दिल्ली में वसंतराव ओक जो बाद में दिल्ली के प्रान्त प्रचारक रहे। बिहार (पटना), में वहां के प्रसिद्ध वकील कृष्ण वल्लभप्रसाद नारायण सिंह (बबुआजी) जो बाद में बिहार के संघचालक रहे। दिल्ली में ही चंद्रकांत भारद्वाज, जिनके पैर में गोली धंसी और जिसे निकाला नहीं जा सका। बाद में वे प्रसिद्ध कवि और अनेक संघ गीतों के रचनाकार हुए। पूर्वी उत्तर प्रदेश में माधवराव देवडे़ जो बाद में प्रान्त प्रचारक बने और इसी तरह उज्जैन (मध्य प्रदेश) में दत्तात्रेय गंगाधर (भैयाजी) कस्तूरे का अवदान है जो बाद में संघ प्रचारक हुए. अंग्रेजों के दमन के साथ-साथ एक तरफ सत्याग्रह चल रहा था तो दूसरी तरफ अनेक आंदोलनकर्ता भूमिगत रहकर आन्दोलन को गति और दिशा देने का कार्य कर रहे थे. ऐसे समय भूमिगत कार्यकर्ताओं को अपने घर में पनाह देना किसी खतरे से खाली नहीं था. 

· 1942 के आन्दोलन के समय भूमिगत आन्दोलनकर्ता अरुणा आसफ अली दिल्ली के प्रान्त संघचालक लाला हंसराज गुप्त के घर रही थीं और महाराष्ट्र में सतारा के उग्र आन्दोलनकर्ता नाना पाटील को भूमिगत स्थिति में औंध के संघचालक पंडित सातवलेकर ने अपने घर में आश्रय दिया था. ऐसे असंख्य नाम और हो सकते हैं. उस समय इन सारी बातों का दस्तावेजीकरण (रिकार्ड) करने की कल्पना भी संभव नहीं थी. 

· प्रसिद्ध समाजवादी श्री अच्युत पटवर्धन और साने गुरूजी ने पूना के संघचालक के घर पर केंद्र बनाया था. श्रीगुरुजी के अनुसार, “हम अपनी प्रतिज्ञा में शपथ लेते हुए कहते हैं कि राष्ट्र को स्वतंत्र करने के लिए मैं स्वयंसेवक संघ का घटक बना हूँ.” (राष्ट्रीय आन्दोलन और संघ, सुरुचि प्रकाशन : नई दिल्ली, पृष्ठ 10)


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